Tuesday, 5 March 2019

साई किरण 06-03-2019 Wednesday

साई किरण
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       ॥  ॐ  श्री  साईं  प्रभु  शान्ति:  ॥
                     अमृत  वाणी

जब तक व्यक्ति मौन रहता है तब तक उसके गुण अवगुण छिपे रहते हैं. परंतु उसकी वाणी भाषा और शारीरिक भाषा से उसके पूरे व्यक्तित्व का पता लगने लगता है.
नकारात्मक विचार, तर्क वितर्क की आदत व्यक्ति की बुद्धि को स्थिर नही रहने देती है. इसलिये वह विकसित समाज का अंग नही बन पाता है.
बुद्धि की अस्थिरता और भ्रमित बुद्धि के कारण मानव का सांसारिक और आध्यात्मिक चिंतन उसके ज्ञान तक सीमित हो जाता है. इसलिये न तो उसको सांसारिक लोग प्रभावित कर पाते हैं और न ही आध्यात्मिक चिंतन की ओर उसका जीवन आकर्षित हो पाता है.
यहीं से कट्टर पंथ की उत्पत्ति होती है. जब विचार की सीमा सीमित हो जाती है तब सामप्रदयिक नीति का प्रभाव बढ़ने लगता है. उस साम्प्रदायिक नीति का प्रभाव ही स्वाभिमानी को अभिमानी बना देता है.
जहाँ पर अभिमान है वहाँ पर करुणा दया उदारता सम्बेदनशीलता जैसे भाव का आभाव होने लगता है. ऐसी स्थिति मे केवल स्वार्थपरता ही विकसित हो पाती है.
स्वार्थ का आवरण परमार्थ को विकसित नही होने देता है. ऐसी स्थिति मे उस समाज का विकास उस स्तर का नही हो पाता है जहाँ पर साधु संत प्रवृत्ति विकसित होती है.
जहाँ पर संत हैं वहाँ पर विवेक है.जहाँ पर विवेक का महत्व है वहाँ पर परमार्थ है और परमार्थ ही संत जीवन है. तन मन की इच्छाओं का दमन करने के बाद ही संत भाव उत्पन्न होता है.
मानव योनि प्राप्त करने से पूर्व जीवात्मा विचार शक्ति के आभाव मे पशुता भरा अर्थात पेट पालने और संतान उत्पन्न करने का जीवन जीया है.
मानव योनि प्राप्त करने के बाद भी यदि विचार शक्ति सम्पन्न मानव जीवन को संत प्रवृत्ति मे परिवर्तित नही कर सकता तो निश्चय ही उसे जन्म मृत्यु के क्रम से मुक्ति नही होगी.
इसीलिये सद्गुरु श्री साईं नाथ के कहा है "जैसा भाव रहा जिस जन का, वैसा भाव रहा मेरे मन का ".
श्री साईं बाबा की शरण प्राप्ति के लिये मन मे संत प्रवृत्ति का विकास हो सके उसके लिये आओ साईं सिद्धि मंत्र का निरंतर जाप करें.
साईं सिद्धि मंत्र " ॐ प्रज्ञा रुपेण सद्गुरु साईं भक्त चित्त संस्थिता , सर्व लोकेश तमस विनाशक कोटि सूर्य समप्रब: ".
म सिन्हा , साईं किरण
www.saisaranamyatra.com

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